Wednesday, June 17, 2009

३री कक्शा की kavitaa मेरे मन की बातों को इतनी अच्छी तरहां से कह रही है.

सूरज तपता, धरती जलती,
गरम हवा जोरों से चलती,
तन से बहुत पसीना बहता,
हाथ सभी के पंखा रहता.

आ रे बादल, काले बादल,
गर्मी दूर भगा रे बादल,
रिम झिम बूंदे बरसा बादल,
झाम झाम पानी बरसा बादल।

लगता नही की वर्षा की कोई आशंका है। INSAT photos are tres depressing: http://www.imd.gov.in/section/satmet/dynamic/insatsector-irc.htm